हमारे घर के अंदर अगर मकड़ी का जाला लग जाता है तो हम उसे झाड़ू से साफ करते है। वह जाला झाड़ू पर चिपक जाता है और हमारे घर की साफ सफाई हो जाती है।
ठीक इसी तरह हम किसी की बुराई करते हैं या निंदा करते हैं तो समझो हम झाड़ू का काम कर रहे हैं। उसकी बुराई अपने सिर पर ले लेते हैं। जिस तरह झाड़ू पर जाला चिपकता है उसी तरह सामने वाले के अवगुणों के पाप हमारे ऊपर चिपक जाते हैं। इसलिए सभी संतों ने कहा है किसी की बुराई मत करो।
तिनका कबहुँ ना निंदिये, जो पाँव तले होय।
कबहुँ उड़ आखों पड़े, पीर घनेरी होय।।
किसी की बुराई करने से पहले यह देख लेना चाहिए कि हममें तो कोई बुराई नहीं है। यदि हो तो पहले उसे दूर करना चाहिए। दूसरों की निंदा करने में जितना समय व्यर्थ बर्बाद करते हैं, उतना समय आध्यात्मिक चिंतन में या ध्यान में लगाना चाहिए। आध्यात्मिक स्तर पर उन्नति के लिए हमें प्रवचन सुनने चाहिए, आध्यात्मिक साहित्य पढ़ना चाहिए। इन बातों को मानने पर हम स्वयं इससे सहमत होंगे कि दूसरों की बुराई से बढ़ने वाले द्वेष को त्याग कर हम परम आनंद की ओर बढ़ रहे हैं।
हम दुसरो की बुराइया क्यों करते है?
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Nice thought
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Thanks Rohit
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